कलह का मूल कारण हालाँकि कात्यायनी ही थीं।
कात्यायनी के वाक्यस्फुलिंग जब भैरव के चित्त-बारूद पर गिरकर उसे विस्फोटक बना रहे थे, उसी समय अगर हॉकर हीरालाल के साथ भैरव की आमना-सामनी नहीं होती, तो यह काण्ड नहीं घटता।
कात्यायनी की बहुत दिनों से इच्छा थी नये चलन की एक साड़ी खरीदने की।
अर्थाभाव से ग्रस्त बेरोजगार भैरव इस इच्छा को पूरी नहीं कर पा रहा था। लेकिन पत्नी को वह यह कहकर बहलाना चाहता था कि इस तरह की दिखावे वाली चीजें वह पसन्द नहीं करता और इस विलासिता की लालसा के कारण ही देश रसातल में जा रहा है। इसलिए-
कात्यायनी पतिव्रता जरुर थीं, मगर ऐसे उपदेशों से बहल जाने वाली वे नहीं थीं।
वे बोलीं, "घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने। जिसकी जेब में फूटी कौड़ी की औकात नहीं, उसे ब्याह करने की जरुरत क्या थी?"
मार्मिक बात!
क्रोधित भैरव सिर पर थोड़ा तेल चुपड़कर दनदनाते हुए घर से बाहर निकल गया। दोपहर का समय था, आसमान से आग बरस रही थी। बाहर निकलते ही सामने नीम के पेड़ पर निगाह गयी। सवेरे से दातून भी नहीं किया था उसने। भैरव ने नीम के पेड़ की एक डाली झुकाकर पट्-से एक दातून तोड़ा।
"मंजन चाहिए- बढ़िया दन्तमंजन- "
भैरव ने पलटकर देखा, एक बिलकुल अपरिचित व्यक्ति हाथ में छोटा-सा एक सूटकेस लिये उसकी तरफ देख रहा था।
चेहरे पर मृदु हँसी।
हॉकर हीरालाल।
हॉकर हीरालाल को इस भूचड़ देहात में नहीं होना चाहिए था। उन्हें शहर जाना था। जा भी रहे थे- लेकिन ट्रेन में सो जाने के कारण ‘ओवरकैरिड’ होकर इस देहाती गाँव में आ पहुँचे।
सन्ध्या से पहले वापसी की ट्रेन नहीं थी। यदि कुछ ‘बिजनेस’ हो जाय- यही आशा लेकर बेचारे दोपहर की इस चिलचिलाती धूप में भी आस-पास घूमकर देख रहे थे।
विस्मित भैरव ने पूछा, "आप यहाँ कहाँ से आ गये भाई साहब?"
"मंजन है- बढिया दन्तमंजन। दाँत में कीड़े लगे हों, मसूढ़ों में दर्द हो, मवाद आता हो, खून आता हो, मुँह से दुर्गन्ध आती हो- सब ठीक हो जायेगा भाई साहब। बढ़िया दन्तमंजन है- "
"वो तो ठीक है, लेकिन आप आये कहाँ से? इन देहाती इलाकों में हमलोग जरा शान्ति से रहते हैं, आपलोगों का आना शुरु हो गया तो- "
"व्यवहार करके देखिये- अच्छा दन्तमंजन है- "
नीम का दातून चबाते हुए भैरव बोला, "खाक!"
हँसकर हीरालाल बोले, "जी नहीं, बढ़िया मंजन है। व्यवहार तो करके देखिये- "
हीरालाल के झक् सफेद दाँतों की तरफ देखकर भैरव ने कहा, "आपके दाँत तो बड़े चमकदार हैं- यही मंजन लगाते हैं क्या?"
थोड़ा हँसकर हीरालाल बोले, "जी हाँ।"
भैरव एकबार पिच्च फेंककर सामने के दाँतों पर दातून घिसने लगा।
कहने की जरुरत नहीं, दृश्य कोई नयनाभिराम नहीं था।
"मंजन लीजियेगा क्या एक डिब्बा?"
मुँह विकृत कर भैरव ने कहा, "खिसक लीजिये तो महाराज। आपलोग हुए देश के दुश्मन। दुनियाभर की शौकिनी बेकार चीजें जुटाकर देश को रसातल में धकेल रहे हैं आपलोग। समझे?"
अपने सुन्दर दाँतों का प्रदर्शन करते हुए हीरालाल फिर एकबार हँसे। बोले, "नहीं समझ सका आपकी बात। देश में दन्तरोगों की तो कोई कमी नहीं है।"
हठात् उत्तेजित होकर इसबार भैरव ने कहा, "इससे आपको क्या? आप निकलिये तो इस गाँव से। ये सब मंजन-फंजन दिखावे की चीजें यहाँ नहीं चलेंगी- "
हीरालाल हॉकर होते हुए भी आखिर रक्त-मांस के बने थे। अतः बोले, "आप ही क्या इस गाँव के मालिक हैं?"
बात तो सही थी, मगर इस कथन ने भैरव के आत्मसम्मान पर आधात किया। भैरव बेकार था, सत्य है; वह पढ़ा-लिखा नहीं था, सत्य है; लेकिन उसके शरीर में शक्ति थी, यह भी सत्य है। वह गाँव का मालिक तो नहीं था, लेकिन इसे वह गाँव से निकाल बाहर करने की क्षमता रखता था। इन मक्कारों ने देश के भोले-भाले युवाओं को पथभ्रष्ट कर रखा है।
दो वक्त की रोटी का जुगाड़ ही दुष्कर है- और यहाँ दन्तमंजन!
तेजी से पिच्च फेंककर भैरव ने कहा, "निकल जाईये गाँव से कह रहा हूँ!"
"गाँव से निकालने वाले आप होते कौन हैं जनाब, जरा मैं भी तो सुनूँ।"
गरजकर भैरव बोला, "निकल जाईये- "
"आपके जैसे बहुत देखे हैं गीदड़ भभकी देने वाले।"
इसके बाद ही लेकिन भैरव ने दौड़के जाकर हीरालाल के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया।
बेशक, भैरव का व्यवहार आश्चर्यजनक था।
लेकिन इससे भी आश्चर्यजनक एक काण्ड और घट गया। थप्पड़ खाने के साथ-ही-साथ हीरालाल पोपले हो गये। उनके नकली दाँतों का सेट बाहर आ गिरा।
यह देखकर कि स्तम्भित भैरव उनकी घनी, काली मूँछों की तरफ ताक रहा है, हीरालाल ने थोड़ा हँसकर कहा, "जी हाँ, यह भी। बढ़िया कलप भी मैं रखता हूँ। चाहिए? क्यों मार-पीट कर रहे हैं भाई साब? गरीब आदमी हूँ- यही सब करके परिवार की गाड़ी किसी तरह खींच रहा हूँ। इस बुढ़ापे में अपना जवान कमाऊ बेटा खो दिया है मैंने- "
स्तम्भित, अवाक् भैरव बोलने की स्थिति में लौटने के बाद बोला, "अच्छा, लाईये एक डिब्बा मंजन।"
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